सम्राट मिहिरभोज
सम्राट मिहिरभोज गुर्जर साम्राज्य के एक महान योद्धा थे। ये गुर्जर प्रतिहार वंश के सर्वाधिक प्रतापी और महान शासक थे। उन्होंने पचास साल से ज्यादा शासन किया। उनका मूल नाम ’मिहिर’ था और ’भोज’ कुल नाम अथवा उपनाम था। उनका राज्य उत्तर में हिमालय, दक्षिण में नर्मदा, पूर्व में बंगाल और पश्चिम में सतलुज तक विस्तृत था, जिसे सही अर्थों में साम्राज्य कहा जा सकता है।
मिहिरभोज प्रतिहार राजवंश के सबसे महान राजा माने जाते हंै। इन्होने लगभग 50 साल तक शासन किया। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था और इसके अन्तर्गत वे क्षेत्र आते थे जो आधुनिक भारत के राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उड़ीसा गुजरात, हिमाचल आदि राज्य हैं। सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वी तक 49 साल राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान (पाकिस्तान) से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फैला हुआ था। 50 साल तक राज्य करने के बाद वे अपने बेटे महेंद्र पाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे।
अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिर भोज की महान सेना की तारीफ की, साथ ही मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण में राजकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती हुई बताया गया है।
उन्होंने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायण लाल को परास्त कर उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। सम्राट मिहिरभोज ने दक्षिण के राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष को पराजित कर दिया था।
सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पराजित करके सिन्ध को अपने साम्राज्य में मिलाकर, मुल्तान के मुस्लिम शासक को वे अपने नियंत्रण में रखते थे। कन्नौज पर अधिकार के लिए बंगाल के पाल, उत्तर भारत के प्रतिहार और दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासकों के बीच लगभग 100 वर्षों तक संघर्ष होता रहा जिसे इतिहास में ’त्रिकोणात्मक संघर्ष’ कहा जाता है। कहते हैं कि मिहिर भोज ने काबुल के राजा ललिया शाही को तुर्किस्तान के आक्रमण से बचाया था। दूसरी ओर नेपाल के राजा राघवदेव को तिब्बत के आक्रमणों से बचाया था।
परंतु उनकी पालवंशी राजा देवपाल और दक्षिण के राष्ट्कूट राजा अमोघवर्ष की शत्रुता चलती रहती थी। लगभग 50 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन करने के पश्चात सम्राट मिहिर भोज ने उनके पुत्र महेंद्रपाल प्रथम को राज्य की बागडोर सौंप दी और उन्होंने सन्यासी का रूप धारण कर जंगल की तरफ निकल पड़े। सम्राट मिहिर भोज की मृत्यु सामान्य रूप से 885 ईस्वी में हुई।
हरीश चौधरी