माता रमाबाई
विश्व इतिहास में अद्वितीय त्याग और समर्पण की प्रतीक माता रमाबाई ऊर्फ रमाई अद्भुत व्यक्तित्व, अद्भुत शक्ति और अदम्य साहस की जीती जागती मिसाल हैं। माता रमा का सौम्य व्यवहार, कर्तव्यनिष्ठा श्रद्धा और समर्पण यह गुण उनके व्यक्तित्व की अद्भुत छाप थी। माता रमा ने अपने व्यवहार और अपने कार्य से करोड़ों महिलाओं के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है। माता रमाई वह महान व्यक्तित्व थीं जिनके बिना बाबासाहेब के जीवन संघर्ष की कल्पना अधूरी है। बाबा साहेब के हर कदम में रमा के कदम भी शामिल हैं, यदि भूखे रहकर बाबासाहेब ने शिक्षा अर्जित की, तो माता रमाई ने भी भूखे रहकर परिवार और बच्चों की परवरिश की। माता रमा हर कदम पर एक मजबूत सिपाही की भांति बाबासाहेब के साथ खड़ी रहती थीं। माता रमाई का जीवन त्याग की प्रतिमूत्र्रि और समर्पण व निष्ठा उनका गुण था।
माता रमाबाई का जन्म 07 फरवरी 1898 को महाराष्ट्र में दापोली के पास वणंद गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम भीकू धूत्रे और माता का नाम रुक्मणि था। बचपन में रमाबाई को रामी नाम से पुकारा जाता था। उनकी दो बहनें और एक भाई था। रमा ने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया जिसके बाद रमा और सभी बच्चे मुम्बई में अपने चाचा के साथ रहने लगे। रामी ने छोटी सी उम्र में ही जिम्मेदारी उठानी सीख ली थी। 09 वर्ष की होने के पश्चात् रामी का विवाह बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर से हो गया था। माता रमाबाई कर्तव्य-परायण महिला थीं। बाबासाहेब माता रमा को प्यार से रामू कहकर पुकारते थे। विवाह के बाद बाबासाहेब अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहते थे और पूरे परिवार का उत्तरदायित्व रमा के ऊपर था जिसे उन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाया था। बाबासाहेब और माता रमाई के जीवन में आर्थिक परेशानी बहुत ज्यादा थी लेकिन माता रमाबाई ने हर परेशानी का सामना अपने साहस और धैर्य के साथ किया। कई बार उनके पास खाने के लिए खाना नहीं होता था, वे अक्सर पानी पीकर सो जाया करती थीं। रमाई कंडे और उपले बेचकर पैसे इकट्ठा कर लेती थीं और बाबासाहेब को पैसे पहुँचाकर उनकी आर्थिक मदद करती थीं। माता रमाई का पूरा जीवन अभाव में गुजरा लेकिन उन्होंने कभी भी बाबासाहेब से शिकायत नहीं की। रमाबाई एक स्वाभिमानी महिला थी।
बाबासाहेब जब अमेरिका में अपनी पढ़ाई कर रहे थे तब माता रमाबाई को पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने रमेश रखा परंतु कुछ समय बाद ही वह बेटा दुनिया को छोड़ कर चला गया। रमाबाई ने यह खबर बाबासाहेब को नहीं बताई ताकि उनकी पढ़ाई में कोई भी रुकावट ना आ सके और वह परेशान होकर अपनी पढ़ाई को बीच में ना छोड़ें। बाबासाहेब और माता रमाई के दूसरे बच्चे का नाम गंगाधर था।
वह भी कुछ समय बाद बीमारी के कारण चल बसा। अपने दो बेटों के चले जाने के बाद माता रमाबाई ने अपने तीसरे पुत्र यशवंत को जन्म दिया माता रमाबाई अपने हर दुख को सह लेती थी ताकि बाबासाहेब की पढ़ाई में कोई रुकावट ना आए। बाबासाहेब ने एक किताब लिखी जिसका नाम ‘‘थॉट्स ऑफ पाकिस्तान‘‘ था। इस किताब को बाबासाहेब ने माता रमाई को उनके अदम्य त्याग हेतु समर्पित किया। बाबासाहेब के हृदय में माता रमा के लिए अत्यंत प्रेम व सम्मान था। दोनों बेटों को खो देने के बाद बाबासाहेब के घर में एक कन्या की किलकारियां गूंजी जिसका नाम इंदु रखा गया। बाबासाहेब उस समय पढ़ाई करने के लिए विदेश गए थे। इंदु भी बाकी बच्चो की तरह बीमार रहने लगी। अपनी बेटी की बीमारी के लिए माता रमाई ने कुछ पैसे इकट्ठे किए। उसी समय माता रमा को बाबासाहेब की चिट्ठी आई कि मेरे पास पैसे नहीं हैं तुम्हारे पास यदि पैसे हो तो मेरे पास भेज दो।
बाबासाहेब की चिट्ठी को पढ़कर माता रमाबाई असमंजस में पड़ गईं कि पैसे बाबासाहेब को दूं या बेटी इंदु का इलाज करवाऊं। बड़ी असमंजस की स्थिति के बाद रमाबाई ने वो पैसे बाबासाहेब को भिजवा दिया और इंदु ने दवाई के अभाव में दम तोड़ देती हैं। बाबासाहेब बहुत भावुक व्यक्ति थे इसलिए वे जब भी माता रमा को पत्र लिखते थे तब हमेशा उनकी आखें नम रहती थीं।
अनिल प्रथम IPS