Thursday, September 28, 2023
spot_img
Homeकही हम भूल ना जायेज्ञानी दित्त सिंह

ज्ञानी दित्त सिंह

ज्ञानी दित्त सिंह

ज्ञानी दित्त सिंह

ज्ञानी दित्त सिंह को पंजाबी पत्रकारिता का ‘‘पितामह‘‘ कहा जाता है। वे महान विद्वान, कवि व प्रसिद्ध लेखक रहे है। उन्होंने अपनी कलम की ताकत से समाज की कुरीति और हिंदू धर्म के पाखंडवाद पर कड़ा प्रहार किया था। ज्ञानी दित्त सिंह का जन्म 1850 में पंजाब के नंदपुर कलोड़ गांव जिला फतेहगढ़ साहिब में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबा दीवान और माता का नाम रामकौर था। ये रविदासिया जाति से संबंध रखते थे। ज्ञानी दित्त सिंह को छोटी सी उम्र में ही पढ़ने के लिए संत गुरुबक्श के नेतृत्व में गुलाबदासी सम्प्रदाय भेजा गया। उन्होंने गुरुमुखी वेदांत नीति-शास्त्र आदि ग्रंथों का पूर्ण रूप से अध्ययन किया और इन सभी को पढ़ने के बाद ये उन सभी ग्रंथों में निपुण हो गए। अपने शुरुआती समय में ज्ञानी दित्त सिंह भाई जवाहर सिंह के संपर्क में आ गए थे और उनसे प्रभावित होकर वे आर्य समाजी हो गए। जवाहर सिंह ने आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद से ज्ञानी दित्त सिंह का परिचय करवाया। वे सभी आंदोलन में सक्रिय रहे हैं, और विशेष रुप से सिंह सभा आंदोलन में उनकी काफी भागीदारी थी जिस कारण वे लगातार सिंह सभा के प्रचार-प्रसार में जुट गए। लेकिन धीरे-धीरे ज्ञान दित्त सिंह को हिंदू धर्म में मौजूद पाखंडवाद साफ-साफ नजर आने लगा और वो आर्य समाज के क्रिया-कलापों से दूर होते गए।

जब आर्य समाज की 11वी वर्षगांठ थी तब लाला मुरहधर के द्वारा सिक्ख गुरुओं के लिए आपत्तिजनक शब्दांे का प्रयोग हुआ तो ज्ञानी दित्त सिंह बहुत आहत हो गए और उन्होंने तुरंत आर्य समाज को छोड़ दिया, और अपना सम्पूर्ण जीवन सिंह सभा के कार्यों में लगाना शुरू कर दिया।

आर्य समाज को छोड़ने के बाद ज्ञानी दित्त सिंह तर्क के आधार पर पाखंडवाद और आडंबरवाद का विरोध करने लगे थे। वे धीरे-धीरे मूर्ति पूजा के घोर विरोधी हो गए थे। उन्होंने अमृतसर में श्री गुरु ग्रंथ साहिब के दरबार में बैठने वाले बाबा खेम सिंह बेदी की गद्दी को हटवा दिया था।

ज्ञानी दित्त सिंह ने समाज में बुरी तरीके से फैले अंधविश्वास, पाखंडवाद, आडंबरवाद, टोना-टोटका और झाड़-फूंक का पूर्ण रूप से विरोध किया था। उन्होंने लोगों को इन सब से बाहर निकाला। उन्होंने सबके अंदर आत्मसम्मान जगाया और इंसान को इंसान समझना सिखाया। ज्ञानी दित्त सिंह का कहना था कि यदि समाज विकास करना चाहता है तो उसे जात-पात और रंगभेद आदि से ऊपर उठना होगा।

अपनी लेखनी से ज्ञानी दित्त सिंह ने समाज में परिवर्तन की नई आंधी ला दी थी। उन्होंने लगभग 70 पुस्तकें लिखी हंै। समाज में परिवर्तन की आंधी लाने के बाद साल 1901 में ज्ञानी दित्त सिंह का निधन हो गया। उन्होंने ऐसे कई कार्य किए जिसकी कल्पना बहुजन समाज नहीं कर सकता था। उनके निधन के कुछ समय बाद उन्हें ‘‘पंथ रत्न‘’ से सम्मानित किया गया।

मनप्रीत कौर

मनप्रीत कौर

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

Recent Comments