झलकारी बाई
सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा महान क्रांतिकारियों का नाम लिया जाता है लेकिन बहुत कम लोग हैं जो यह जानते हैं कि ऐसी कई वीरांगनाएं भी थीं जिन्होंने भारत भूमि को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाया। उन्ही वीरांगनाओं में से एक नाम झलकारी बाई का भी है जिन्होंने अपने पराक्रम से अंग्रेजों को धूल चटा दी थी। झलकारी बाई एक ऐसी वीरांगना थी जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं किया गया लेकिन इन्होंनेे अपनी बहादुरी से अपना नाम दलितों के इतिहास में अमर कर लिया। झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1820 को उत्तर प्रदेश के झाँसी के पास के भोजला गाँव में एक कोरी परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवा सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। उनके पिता ने उन्हें एक पुत्र की तरह पाला और बड़ा किया। उनके पिता ने उन्हें घुड़सवारी, तीर चलाना, तलवार बाजी करने जैसे सभी युद्ध कौशल सिखाए। झलकारी ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, पर फिर भी वे किसी भी कुशल और अनुभवी योद्धा से कम नहीं थीं। ये बताया जाता है कि झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की ही तरह उनकी बहादुरी के चर्चे भी बचपन से ही होने लगे थे। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं की देख-रेख और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थीं। एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उसे मार गिराया। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया, तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।
झलकारी बाई जितनी बहादुर थी, उतने ही बहादुर और वीर सैनिक से उनका विवाह हुआ। इस वीर सैनिक का नाम पूरन था, जो झाँसी की सेना में अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध था। विवाह के बाद जब झलकारी झाँसी आई तो एक बार किसी अवसर पर गाँव की अन्य महिलाओं के साथ, वह भी महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले में पहुंच गयीं। वहाँ जब रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें देखा तो वह उन्हें देख कर दंग रह गयी। झलकारी बाई बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही दिखतीं थीं
साथ ही जब रानी ने झलकारी की बहादुरी के किस्से सुने तो वो उनसे इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने झलकारी को तुरंत ही रानी लक्ष्मीबाई द्वारा बनाई गई दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दे दिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया। पहले से ही इन कलाओं में निपुण झलकारी इतनी पारंगत हो गयी कि जल्द ही उन्हें दुर्गा सेना का सेनापति भी बना दिया गया। केवल सेना में ही नहीं बल्कि बहुत बार झलकारी ने व्यक्तिगत तौर पर भी रानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया। कई बार उन्होंने रानी की अनुपस्थिति में अंग्रेजों को चकमा दिया और हर बार जीतकर वापस आई।
1857 की क्रांति में झलकारी बाई का योगदान
1857 का विद्रोह चरम सीमा पर था, उस समय जनरल ह्यूरोज ने अपनी विशाल सेना के साथ 23 मार्च 1858 को झाँसी पर आक्रमण किया। रानी ने वीरतापूर्वक अपने सैन्य दल से उस विशाल सेना का सामना किया। झाँसी की रानी कालपी में पेशवा द्वारा सहायता की प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन उन्हें कोई सहायता नही मिल सकी, क्योंकि तात्याँ टोपे जनरल ह्युरोज से पराजित हो चुके थे। जल्द ही अंग्रेजी फौज झाँसी में घुस गयी और रानी अपने लोगों को बचाने के लिए जी-जान से लड़ने लगी। ऐसे में झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई के प्राण बचाने के लिये खुद को रानी लक्ष्मीबाई बताते हुए उनसे लड़ने का निर्णय लिया। उन्होंने पूरी अंग्रेजी सेना को भ्रम में रखा ताकि रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित बाहर निकल सकें। रानी लक्ष्मी बाई का वेश धर झलकारी बाई किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज के शिविर में उससे मिलने पहँुची। ब्रिटिश शिविर में पहुँचने पर उन्होंने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूरोज से मिलना चाहती है। ह्यूरोज और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्जे में है। यह झलकारी की रणनीति थी, ताकि वे अंग्रेजों को उलझाए रखें और रानी लक्ष्मी बाई को ताकत जुटाने के लिए और समय मिल जाए। आखिरकार झलकारी बाई ने अपनी बहादुरी और सूझबूझ से युद्ध जीत लिया। कुछ लोगों का कहना हैं कि युद्ध के बाद उन्हें छोड़ दिया था और फिर उनका 1890 में देहाँत हो गया। इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी बाई को युद्ध के दौरान 4 अप्रैल 1858 को वीरगति प्राप्त हुई। उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों को पता चला कि जिस वीरांगना ने उन्हें कई दिनों तक युद्ध में घेरकर रखा था, वह रानी लक्ष्मी बाई नहीं बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई थी। इसे विडंबना ही कह लीजिए कि देश के लिए अपने प्राणों की भेंट चढ़ा देने वाली भारत की इस बेटी बाई को इतिहास में बहुत अधिक स्थान नहीं मिला, पर उनके सम्मान में भारत सरकार ने उनके नाम का पोस्ट और टेलीग्राम स्टेम्प जारी किया, साथ ही भारतीय पुरातात्विक सर्वे ने अपने पंच महल के म्यूजियम में, झाँसी के किले में झलकारी बाई का भी उल्लेख किया है जो हमारे लिए गौरव की बात है। इसलिए कहा जाता है कि खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी नहीं झलकारी बाई थी।
बनवारी लाल