भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर
भारतरत्न बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर एक युगपुरुष, महान विद्वान, प्रखर अर्थशास्त्री,विधिवेत्ता, समाज शास्त्री, इतिहास, मानव शास्त्र और दर्शन शास्त्र के ज्ञाता थे। वे सैकड़ों सालों से सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं बौद्धिक जंजीरों में जकड़े समाज को मुक्ति की राह दिखाने वाले मुक्तिदाता थे, जिनकी वजह से दलित, पिछड़ा और आदिवासी समाज आज सम्मान की रोटी खा पा रहा है और सम्मान के साथ जी रहा है। इस वर्ग के लोगों के पास रोटी खाने, कपड़ा पहनने और रहने के लिए मकान पाने का कोई अधिकार नहीं था, यह सब बाबासाहेब की ही देन है। आज बहुजन समाज आत्मसम्मान का जीवन व्यतीत कर रहा है। बाबासाहेब आधुनिक भारत के राष्ट्र निर्माता, विश्वरत्न, भारत में सामाजिक लोकतंत्र की बुनियादी स्तंभ और भारत के संविधान निर्माता थे। लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती, बौद्ध धम्म पूर्ण स्थापित कर प्रबुद्ध भारत की नींव रखने वाले, शिक्षा, संघर्ष, संगठन से ज्ञान, साहस और सामाजिक बल को बढ़ाने का सिद्धांत देने वाले, धर्म को नैतिक बल के रूप में परिभाषित कर मानव मुक्ति की राह दिखाने वाले बाबासाहेब महामानव थे।
बालक भीम का जन्म महार जाति में मध्यप्रदेश के महू जिले में हुआ था। उनके पिताजी रामजी सकपाल ब्रिटिश सेना में एक सैन्य अधिकारी थे। बाबासाहेब अंबेडकर अपने माता -पिता के 14वें पुत्र थे। बाबासाहेब अपनी माता भीमाबाई के बेहद करीब और लाड़ले भी थे।
बाबासाहेब किशोरावस्था से ही बहुत निडर और बहादुर थे। वे किसी से नहीं घबराते और ना ही किसी से डरते थे। बाबासाहेब का मनोबल हमेशा से हिमालय पर्वत के समान बहुत ऊंचा रहता था। बाबासाहेब को भोजन मिले या ना मिले लेकिन वह हमेशा पुस्तक खरीदने के लिए तत्पर रहते थे। बाबासाहेब हिंदू धर्म की बातों को लेकर बचपन से ही अपने पिता से तर्क करते थे लेकिन उनके पिता के पास कोई जवाब नहीं होता था। बाबासाहेब जैसे-जैसे बड़े होते गए वैसे-वैसे उनको जातिगत अपमान के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक भेदभाव भी सहना पड़ा। बाबासाहेब जब भी स्कूल जाते तो अलग से अपनी एक टाट-पट्टी ले जाते और कक्षा से बाहर ही बैठकर पढ़ते थे।
उस समय लोग जातिगत मानसिकता से इतने ज्यादा ग्रस्त थे कि बाबासाहेब को स्कूल में दाखिला भी नहीं मिल पा रहा था। उन्हें बच्चों से 10 फुट की दूरी पर बैठाया जाता था यहां तक कि वे ब्लैक बोर्ड के निकट नहीं जा पाते थे। वे अन्य बच्चों की तरह मटके से पानी निकाल कर भी नहीं पी सकते थे। भीमराव बाकी बालकों के साथ खेलों में भी भाग नहीं ले सकते थे। लेकिन बाबासाहेब डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने कभी हार नहीं मानी और अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से वह उस शिखर तक पहुंचे जहां तक मनुवादी विचारधारा के लोग सोच भी नहीं सकते थे। उनके पिता 1894 में सेवानिवृत्त हुए और उनके सतारा चले जाने के बाद उनकी मां का निधन हो गया। बाबासाहेब ने अपनी छोटी-सी उम्र में ही अपनी मां को खो दिया। अपने सभी भाइयों और बहनों में केवल बाबासाहेब ही थे जिन्होंने अपनी परीक्षा हाई स्कूल उत्तीर्ण की। बाबासाहेब के संपूर्ण जीवन की घटनाएं दलितों के साथ किए गए भेदभाव के स्तर को स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। एक समय था जब भेदभाव और छुआछूत इतना ज्यादा हुआ करता था कि नाई भी बाबासाहेब के बाल नहीं काटता था। उनके बाल अक्सर उनकी बहन ही काटा करती थी। यहां तक कि विद्यालय में एक बार एक अध्यापक ने भीमराव को बोर्ड पर लिखने के लिए बुलाया, भीमराव भी बोर्ड की ओर चल ही रहे थे कि तभी विद्यार्थियों ने जोर से कहा कि रूक जाओ! पहले हमें रोटी के डिब्बे उठा लेने दो, जब तक विद्यार्थियों ने रोटियों के डिब्बे नहीं उठाए तब तक उन्हें बोर्ड पर जाने नहीं दिया गया , यानि कि बाबासाहेब की परछाई से भी लोगों को परेशानी होती थी।
ऐसी अपमानजनक स्थिति का सामना करते हुए डॉक्टर अंबेडकर स्कूल शिक्षा हासिल कर कॉलेज में गए। पढ़ाई में दिक्कत होने लगी तो एक मित्र के माध्यम से वह बड़ौदा के शासक सयाजीराव गायकवाड़ के यहां गए जिन्होंने अंबेडकर के लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था कर दी। अंबेडकर ने कानून की उपाधि प्राप्त करने के साथ-साथ ही विधि अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र में अपने अध्ययन और अनुसंधान के कारण कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में कई डॉक्टर डिग्री भी अर्जित की। 1906 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद एल.पी. जी. कॉलेज से 1912 में ग्रेजुएट हुए। साल 1913 और 15 के बीच अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय से तमाम डिग्रियां अर्जित कीं। बड़ौदा राज्य के अधिकारियों को यह बात बहुत चुभ रही थी कि एक अछूत महान लड़का राज्य के खर्च पर विदेशों में उच्च से उच्च शिक्षा हासिल करता जा रहा है। अतः बड़ौदा के राज्य के दीवान ने उन्हें पत्र लिखा कि छात्रवृत्ति की अवधि खत्म हो चुकी है तुरंत भारत लौटकर प्रतिज्ञा पत्र शर्तों के अनुसार बड़ौदा रियासत की 10 वर्ष तक सेवा करो जो कि बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ द्वारा दी गई स्कॉलरशिप के बाद उस राज्य में सैन्य सचिव की सेवा शर्त शामिल थी। बाबासाहेब की पढ़ाई अभी अधूरी रह गई थी लेकिन उन्होंने वापस जाना ही उचित समझा। प्रतिज्ञा पत्र की शर्तों के पालन हेतु डॉक्टर अंबेडकर बड़ौदा रियासत की सेवा के लिए बड़ौदा चल दिए महाराजा बड़ौदा ने आदेश जारी किया कि रेलवे स्टेशन पर अंबेडकर का भव्य स्वागत किया जाए। परंतु एक महार का स्वागत कौन करता इसलिए उन्हें लेने कोई भी स्टेशन नहीं पहुंचा, लेकिन बाबासाहेब इस तरीके के अपमानों को झेलने के आदी हो चुके थे। बाबासाहेब ने बड़ौदा में जाकर सेना सचिव के रूप में कार्यभार संभाला लेकिन यहां का माहौल भी जातिगत भेदभाव के जहर से भरा हुआ था। इतने बड़े अधिकारी होने के बावजूद यहां का कर्मचारी बाबासाहेब को फाइलें फैंक कर देता था, ताकि वह उनसे स्पर्श न हो जाए। इसी तरह उन्हें पानी भी खुद लाकर पीना पड़ता था और यहां तक कि कार्यालय से जाने के बाद कार्यालय को धोया जाता था।
यह सब देखकर डॉ आंबेडकर ने वहां से नौकरी छोड़ दी और बड़ौदा के सयाजी बाग पार्क (संकल्प भूमि) में जाकर सोचने लगे कि मेरे इतना पढ़ा-लिखा होने के बावजूद ये लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। मेरा जो समाज जिसे पढ़ने-लिखने नहीं दिया जाता है उस समाज के लोगों के साथ ये लोग क्या करते होंगे ? उन्होंने वहीं से यह संकल्प लिया कि मैं बड़ौदा की धरती पर तभी लौटूंगा जब तक इस छुआछूत को मिटा ना दूं और तभी अपने समाज को समानता का जीवन दे पाऊंगा। वे इंग्लैंड जाने में सफल हो पाए। 1919 में बाबासाहेब की मुलाकात कोल्हापुर के महाराज छत्रपति शाहूजी से हुई। छत्रपति शाहूजी महाराज ने बाबा साहेब को ‘‘मूकनायक अर्थात गूंगों का नेता‘‘ अखबार प्रकाशित कराने में आर्थिक सहायता प्रदान की। बाबासाहेब ने साल 1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर (एम॰एससी॰) की शिक्षा प्राप्त की, जिसके लिए उन्होंने ‘प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईजेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया‘ (ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण) खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया था। 1922 में, उन्हें ग्रेजइन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। 1923 में, उन्होंने अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस)की उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस ‘‘दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन‘‘ (रुपये की समस्याः इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान) पर थी। लंदन का अध्ययन पूर्ण कर भारत वापस लौटने से पहले भीमराव अम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। किंतु समय की कमी के कारण वे विश्वविद्यालय में अधिक नहीं ठहर सके। उनकी तीसरी और चैथी डॉक्टरेट्स (एलएल॰डी॰, कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 और डी॰लिट॰, उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953) सम्मानित उपाधियाँ थीं।
भारत में लौटने के बाद बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। बाबासाहेब ने एम. ए. कोलंबिया यूनिवर्सिटी लंदन से की। बाबासाहेब ने सर्वसमाज को (गरीब हो या पिछड़ा) वोट का अधिकार दिलवाया। भारत के लोकतंत्र को दुनिया का सर्वोत्तम संविधान दिया जो सबको समानता का अधिकार और मौलिक अधिकार देता है। बाबासाहेब ने बहुजनों को शिक्षा और राजनीति में आरक्षण दिलवाकर उन्हें ताकत देने का काम किया। भारत में महिला मुक्ति की प्रस्तावना रखते हुए बाबासाहेब ने 26 सितंबर 1951 को विधि मंत्री पद से त्यागपत्र दिया। हिंदू कोड बिल के द्वारा बाबासाहेब ने भारतीय महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार, अपनी पसंद से शादी का अधिकार, तलाक का अधिकार, बच्चा गोद लेने तथा उनके संरक्षण का अधिकार दिला कर वर्षों से चले आ रहे पुरुषवादी वर्चस्व से मुक्ति दिला दी। पुरुष प्रधान इस देश में महिलाओं को संपत्ति में अधिकार, तलाक लेने का अधिकार और मातृत्व अवकाश का अधिकार दिलवाया। मजदूरों का किसी देवी देवता ने इतना उद्धार नहीं किया जितना बाबासाहेब ने किया, सभी मजदूर देवताओं के राज में गुलामों की जिंदगी जीते थे लेकिन बाबा साहेब ने मजदूरों के लिए काम के अनुसार वेतन का प्रावधान बनाया। बाबासाहेब से पहले सरकारी नौकरियों में भाई भतीजावाद ज्यादा होता था। इन सबको खत्म करते हुआ संघ लोक सेवा आयोग बनाया जो निष्पक्ष रूप से पढ़े लिखें लोगों को नौकरी प्रदान करता है। बाबासाहेब पूरी दुनिया के सबसे बड़े अर्थशास्त्री थे। इन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी और डबल डॉक्टरेट किया।
बाबासाहेब ने एक किताब लिखी जिसका नाम ‘‘प्रॉब्लम ऑफ रूपी एंड इट्स ओरिजिन‘‘ और इसी के आधार पर साल 1933 में आरबीआई का गठन किया गया। हिल्टन यंग कमीशन का बाबासाहेब ने मसौदा बनाकर दिया था। उसके बाद संविधान में हर पांच साल में वित्त आयोग बनाया जाएगा जो पूरे देश के वित्त की समीक्षा करेगा। बाबासाहेब ने प्रावधान बनाया था कि हर दस साल में नोटबंदी जरूर होनी चाहिए क्योंकि नोटबंदी आर्थिक सुधार के लिए जरूरी है। बाबासाहेब ने जितने भी सुधार किए वो देश और सर्वसामाज के लिए किए। बाबासाहेब द्वारा देश में और सुधारों की बात करें तो बिजली का हीराकुंड बांध, दामोदर घाटी परियोजना, सूरज कुंड नदी परियोजना और सोन नदी घाटी परियोजना इन सभी बांधो का प्रावधान बाबासाहेब अम्बेडकर ने दिया। बाबासाहेब ने नदियों को जोड़ने का भी प्रस्ताव रखा था ताकि बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र में राहत मिले और जहां सूखा पड़ता है वहां की समस्या भी समाप्त हो जाए। बाबासाहेब ने जितने भी सुधार किए वो केवल बहुजनों के लिए ही नहीं बल्कि सर्वसमाज के लिए थे।
बाबासाहेब का कारवां यही नहीं रुका, वो लगातार काम करते रहे जिसके तहत उन्होंने बाद में देश को ग्रिड सिस्टम (जिससे पूरे देश में बिजली बांटी जाती हैं) दिया। उन्होंने केंद्रीय जल सिंचाई आयोग बनाकर सर्वसमाज को नलों में पीने का पानी प्रदान करवाया। जब द्वितीय विश्व युद्ध हुआ तब सभी देशों की अर्थव्यवस्था चैपट हो गई थी उस समय अंग्रेजों को समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जाए तब उस समय बाबासाहेब को पुनर्गठन समिति का अध्यक्ष बनाया, बाबासाहेब के अथक परिश्रम ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम किया। बाबासाहेब ने सुझाव दिया था कि बड़े-बड़े राज्यों को बांट दिया जाए ताकि उनका विकास अच्छे से हो सके लेकिन उस समय की सरकारों ने बाबासाहेब की बात नहीं मानी। बाबासाहेब ने राजनैतिक क्षेत्र में भी काम किए राजनैतिक क्षेत्र में बाबासाहेब विधानपरिषद गए, स्वतंत्र लेबर पार्टी, ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया बनाई और कई सारे सत्याग्रह किए। उन्होंने 24 सितम्बर 1924 को विशुद्ध सामाजिक संगठन समता सैनिक दल की स्थापना की जिसके माध्यम से उन्होंने पानी के लिए सत्याग्रह किया, क्योंकि उस समय तालाब में जानवर नहा सकते थे, मलमूत्र भी त्याग सकते थे परंतु इन्सान पानी नहीं पी सकते थे। इसी समस्या के निवारण के लिए बाबासाहेब ने 1927 में महाड़ सत्याग्रह किया जिसके तहत बाबासाहेब ने सभी को पानी पीने का अधिकार दिलवाया। यहां तक कि मंदिरों में बहुजनों का प्रवेश वर्जित था, ये अधिकार भी बाबासाहेब ने दिया। बाबासाहेब चाहते थे कि प्राथमिक चुनाव प्रणाली एक दशक के बाद स्वतः समाप्त हो जाए, और 15 साल बाद तथाकथित दबे-कुचले वर्ग के बीच जनमत संग्रह पर सशर्त सीटें आरक्षित कर दी जाएँ।
कई हिंदू नेताओं ने इसका कड़ा विरोध किया था और गाँधी खुद पाँच साल बाद जनमत संग्रह चाहते थे। सितंबर 24, 1932 में गाँधी जी और बाबासाहेब अंबेडकर के बीच भारी मतभेद हुआ और लम्बे विवाद के बाद ऐतिहासिक पूना पैक्ट का समझौता हुआ था। बाबासाहेब ने अंत में कहा कि अगर वे गाँधी के जीवन के लिए समझौता नहीं करते तो दलितों को पूर्व ग्रह से जूझना पड़ता। आखिरकार, पूना समझौते पर 24 सितंबर को शाम 5 बजे 23 लोगों ने हस्ताक्षर किए।
मदन मोहन मालवीय और गाँधी ने इस पर हिन्दुओं की ओर से और बाबासाहेब ने अछूत वर्गों की ओर से हस्ताक्षर किए। इस समझौते में दलितों के लिए अलग निर्वाचन और दो वोट का अधिकार खत्म हो गया। अंग्रेजों द्वारा दी गई 80 सीटों के बजाय अछूत वर्गों को 148 सीटें मिलीं। बाबासाहेब के सभी काम मानवता के लिए थे। उन्होंने मानव को मानव समझना सिखाया।
बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का महापरिनिर्वाण
साल 1954 से 55 तक बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का स्वास्थ्य काफी खराब होने लगा उसका कारण था कि बाबा साहब अंबेडकर अपने समाज के लिए दिन-रात पढ़ते रहते थे और चिंतित रहते थे कि समाज को मैं गुलामी से किस तरीके से निकाल पाऊं, यहां तक कि वह दोनों हाथों से लिखा करते थे अपने खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रखा करते थे जिसकी वजह से उन्हें मधुमेह और कमजोर दृष्टि सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ा। इन सभी परेशानियों की वजह से और स्वास्थ्य ठीक ना होने की वजह से 6 दिसंबर 1956 को पूरे देश में एक ऐसी दुःखों की बिजली टूटी जिससे पूरा देश रोने और बिलखने लगा और अपने आप को बेसहारा समझने लगा। उसका एक बहुत बड़ा कारण था कि आधुनिक भारत के राष्ट्रीय निर्माता और दलितों के मसीहा नहीं रहे थे जिसकी वजह से भारत देश में ही नहीं विदेशों में भी उनके चाहने वाले अपने आप को अनाथ महसूस कर रहे थे। उनके मसीहा अब इस दुनिया को छोड़कर जा चुके थे। कौन उनकी लड़ाई को आगे लड़ पाएगा यह सोच सब सदमे में थे।
बाबासाहेब एक महानतम क्रांतिकारी थे जिन्होंने बिना खून बहाए अपनी लड़ाई लड़ी,वे एक महान बोधिसत्व थे जिन्होंने तथागत बुद्ध के जानें के बाद दुनियां को मनुष्यता का मार्ग दिखाया, वे एक संसद, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री राजनीतिज्ञ, विधिवेता, ज्यूरिस्ट, बौद्ध कार्यकर्ता, दार्शनिक फिलॉस्फर, महान विचारक, मानव विज्ञानी इतिहासकार, वक्ता और लेखक थे जिन्होंनेे हजारों किताबे पढ़ने और लिखने का काम किया। बाबासाहेब ने तथागत गौतम बुद्ध के 84,000 सुतो का अध्ययन किया और आसान भाषा में ‘‘बुद्ध और उनका धम्म‘‘ किताब निकाली। ये कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस किताब को पढ़ लेता है उसका जिंदा होते हुए भी पुनर्जन्म हो जाता है। इस किताब से प्रभावित होकर लाखों लोगों ने बुद्ध धर्म को अपनाया। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसने दुनिया भर में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि पाई। बाबासाहेब ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने तथागत बुद्ध के बाद मानव कल्याण के क्षेत्र में काम किया इसलिए उन्हें महामानव कहा जाता है।
मुलकियत सिंह बहल