The Life Of Sant Kabir Das – संत कबीरदासजी

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संत कबीर दास जी
संत कबीर दास जी

संत कबीरदासजी

संत कबीरदासजी

सैकड़ों सालों में कोई एक महापुरुष ही धरती पर जन्म लेता है जैसे कि संत कबीर दास। कबीर ने वर्ण-व्यवस्था, जन्मगत जातीय श्रेष्ठता, सांप्रदायिकता, भाषाई अभिजात्य तथा धार्मिक आडंबरो का विरोध कर एक सभ्य समाज निर्माण करके सामाजिक विषमता को पाटने का प्रयास किया। सृष्टि निर्माण को प्रगति की सहज प्रक्रिया माना। कबीर एक स्पष्टवादी सामाजिक क्रांतिकारी, विचारक कवि थे। सिक्खों के धार्मिक गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर के 541 समतवादी एवं मानवीय सुत्तों को स्थान दिया गया है।
संत कबीरदासजी का जन्म सन 1440 काशी में हुआ था। कबीर पंथ एक विशाल धार्मिक समुदाय है जो संत मत संप्रदायों के प्रवर्तक के रूप में कबीर की पहचान करता है। कबीर पंथ के सदस्यों को कबीर पंथियों के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने पूरे उत्तर और मध्य भारत में कबीर पंथ का विस्तार किया था। कबीर दास की रचनाएं बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ आदि आज भी प्रसिद्ध हैं। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत में धर्म, भाषा, संस्कृति किसी की भी चर्चा बिना कबीर के अधूरी ही रहेगी। कबीर दास ने पाखंडवाद और आडंबरवाद की राह को छोड़कर अपनी एक अलग पहचान बनाई।
संत कबीरदासजी के जन्म के दौरान देश की हालत बहुत ही गंभीर थी। हर तरफ धार्मिक कर्मकांड किए जाते थे। ब्राह्मणों द्वारा पाखंडवाद पूर्णरूप से देश में फैलाया जा चुका था। संत कबीर दास भारत के ऐसे पहले कवि माने जाते हैं जिन्होंने आडंबरवाद और पाखंडवाद का डटकर विरोध किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में हमेशा पाखंडवाद का विरोध किया। भारत देश में कबीर अकेले ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी वाणी से हिन्दू-मुस्लिम धर्म में व्याप्त कुरीतियों, पाखण्ड व धर्मान्धता के खिलाफ सीधा कटाक्ष किया और सभी को इन सभी ढकोसलो से दूर रहकर, मानवता का पाठ पढ़ाया और मित्रता का सन्देश दिया।

उन्होंने आजीवन अपनी रचनाओं में समाज को पाखंडवाद से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया। कबीर दास की वाणी को हिंदी साहित्य में बहुत ही आदर सम्मान के साथ रखा गया है। कबीर की वाणी इतनी महान थी कि उनकी वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया। कबीर दास ने अपनी रचनाओं में आम बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है इसके कारण इनकी रचनाओं को आसानी से पढ़ा और समझा जा सकता है। कबीर की रचनाओं में आम बोलचाल होने के साथ-साथ गहन अर्थ भी होता है जो कि समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में सहायक माना जाता है।

संत कबीरदासजी की रचना की एक और विशेषता यह थी कि उन्होने शास्त्रीय भाषा का अध्ययन नहीं किया था लेकिन फिर भी उनकी भाषा में परंपरा से चली आई विशेषताएं मौजूद हैं। भारत में कितने लेखक पैदा हुए लेकिन वर्षों के इतिहास में कबीर दास जैसा लेखक महान संत और एक समाज सुधारक पैदा नहीं हुआ।

संत कबीरदासजी हमेशा एकता की बात करते थे इसलिए इनको हिंदू और मुस्लिम एकता का भी प्रतीक माना जाता है। कबीरदास की रचनाएं समाज की हकीकत बयां कर देती है। वह हिंदू -मुस्लिम दोनों धर्म में मौजूद आडंबरों पर करारा प्रहार करते थे। कवि और समाज सुधारक के रूप में कबीर दास पाखंडवाद और आडंबरवाद के विरोधी थे। उन्हें अंधविश्वास से सख्त नफरत थी। हिंदू धर्म के अनुसार मृत्यु के पश्चात् लोगों को बनारस में मोक्ष मिलता है लेकिन संत कबीरदासजी ने इस बात का भी विरोध किया था।

वह जुलाहा व्यवसाय और कलाकारों से संबंधित थे। उनका मानना था कि कर्मों के अनुसार ही मनुष्य को सच्चा सुख मिलता है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के दुखों का कारण अत्याधिक इच्छाएं हैं। अपनी लेखनी से मनुष्य का जीवन बदलने के बाद सन 1518 में कबीरदास की मृत्यु मगहर में हो गई। कबीरदास की रचनाएं जितनी उनके समय में प्रसिद्ध थीं उतनी ही आज के समय में भी हैं।

उन्होंने हिंदू-मुस्लिम धर्म में मौजूद पाखंडवाद और अंधविश्वास की सच्चाई दिखाकर समाज को सच्चाई के रास्ते पर चलना सिखाया है और दुःख की बात तो यह है कि कबीर दास द्वारा बताए गए मार्ग पर हम आज भी नहीं चल पाए हैं।


सुनीता रानी सिंह, हरिराज सिंह
संकल्प भूमि ट्रस्ट वडोदरा (गुजरात)

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