Guru Ravidas Biography History In Hindi – संत सिरोमणि गुरु रविदास

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संत सिरोमणि गुरु रविदास
संत सिरोमणि गुरु रविदास

संत सिरोमणि गुरु रविदास

संत सिरोमणि गुरु रविदास

भारत देश में कई महापुरुषों ने जन्म लिया है। महापुरुषों के साथ-साथ कई ऐसे संत भी भारत देश में आए जिन्होंने भारत को अंधकार से छुटकारा दिलाया और लोगो के जीवन को प्रकाशमय बनाया। उन्हीं में से एक संत गुरु रविदास भी थे जिन्होंने भारत को पाखंडवाद से मुक्ति का रास्ता दिखाया। संत शिरोमणि गुरु रविदास एक महान सामाजिक क्रांतिकारी कवि एवं प्रखर विद्वान व अनेक भाषाओं के ज्ञाता, धर्म एवं समाज की असमानता और क्रूरता का विरोध करने वाले, वर्ण व्यवस्था की साजिश को अपनी वाणी से कुचलने वाले, पूर देश में धम्म की नैतिकता स्थापित करने वाले अन्याय, अत्याचार,अपमान, असमानता, अज्ञान, गरीबी, लाचारी, रहित ‘बिना दुःख का सुखद और आदर्श राज्य स्ािापित करने वाली क्रांतिकारी अवधारणा के जनक थे। संत गुरु रविदास जी 15वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान एक भारतीय संत और समाज सुधारक थे। गुरु रविदास का जन्म बनारस में हुआ था। संत सिरोमणि गुरु रविदास का स्थान सभी संतो में सर्वश्रेष्ठ है इसी कारण गुरु रविदास को संत शिरोमणि भी कहा जाता है। संतों में शिरोमणि कवि, गुरु और समाज सुधारक थे।
गुरु रविदास जी के पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कर्मा देवी था। संत गुरु रविदास जी के जन्म के पीछे भी एक अनोखी कहानी है दरअसल संतोख दास और कर्मा देवी संतानहीन थे। अपने व्यवसाय के सिलसिले में गुरु रविदास जी के पिता संतोख दास भ्रमण किया करते थे। एक बार की बात है संतोख दास को किसी काम के सिलसिले में सारनाथ जाना पड़ा।
सारनाथ वही स्थान है जहां बुद्धत्व प्राप्ति के बाद तथागत गौतम बुद्ध ने पांच ब्राह्मण शिष्यों को अपना प्रथम उपदेश दिया था। यहीं पर संयोगवश संतोष दास की मुलाकात रैवतपप्रज्ञ नाम के एक भिक्खु से हुई।

उस दिन भिक्खु बहुत भूखे थे। संतोख दास और उनकी पत्नी ने उनको खीर खिलाकर प्रसन्न कर दिया। कुछ देर बाद भिक्खु संतोख दास और उनकी पत्नी ने अपने संतानहीन होने की बात भिक्खु को बताई। भिक्खु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे दिया और कहा तुम्हें एक ऐसे पुत्र की प्राप्ति होगी जो आगे चलकर एक महान समाज सुधारक और महाकवि के रूप में उभरेगा। भिक्खु की ये बात सुनकर दोनों पति पत्नी बहुत खुश हो गए थे। इस घटना के कुछ दिन बाद कर्मा देवी गर्भवती हुई और कर्मा देवी और संतोख दास के घर में एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। इस बालक का नाम रैवतदास रखा गया क्योंकि संत सिरोमणि गुरु रविदास के माता पिता को वरदान देने वाले भिक्खु का नाम रैवतपप्रज्ञ था। रैवतदास का नाम आगे चलकर रविदास हो गया।
संत सिरोमणि गुरु रविदास का नाम आज भी बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। गुरु रविदास हमेशा समाज सुधार में लगे रहे। उन्होंने हमेशा हिंसा का विरोध कर अहिंसा और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने अपने उपदेश द्वारा सभी का कल्याण और भला ही किया। वह एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे जिसमें द्वेष, ईष्र्या और दःुख ना हो बल्कि प्रेम, भाईचारा और एकता हो। उनका मानना था कि राज ऐसा होना चाहिए जहां किसी को भी किसी भी प्रकार का कष्ट ना हो और जहां पर एक मनुष्य को सिर्फ मनुष्य समझा जाए और जहां पर सभी लोगों का धर्म सिर्फ मानवता ही हो। संत रविदास उन संतों में थे जो डट कर हिंदू धर्म में मौजूद पाखंडवाद का विरोध करते थे। वह हमेशा आडम्बरवाद और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक क्रांतिकारी परिवर्तन की मांग करते थे। गुरु रविदास एक वैज्ञानिक सोच के संत थे, उनका मत था कि मानव में वैज्ञानिक सोच होनी चाहिए यदि वैज्ञानिक सोच नहीं होगी तो मानव आडम्बरवाद से मुक्ति नहीं पा सकता है। भारत में हमेशा से जातिवाद एक महामारी की तरह फैला है। हिंदू धर्म द्वारा फैलाई गई है जातिवाद व्यवस्था संत गुरु रविदास को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।
उन्होंने हमेशा जातिवाद को खत्म करने का प्रयास किया और हमेशा एकता पर बल दिया। गुरु रविदास हमेशा कहते थे की जातिवादी व्यवस्था को दूर करके ही समाज की उन्नति और विकास हो पाएगा। समाज की उन्नति के लिए जातिवाद खत्म करना ही समाज की भलाई के लिए पहला कदम होगा। उनके जीवन की कहानी में कई उदाहरणों का उल्लेख है जब उन्हें उनकी जाति और पारिवारिक व्यवसाय के कारण पीड़ित किया गया था। जातिवाद को खत्म करने के लिए उन्होंने जाति, पंथ, नस्ल या लिंग के आधार पर सभी पूर्वाग्रह या भेदभाव को खत्म करने की दिशा में काम किया। गुरु रविदास कहते थे कि सिर्फ मानव ही एक जाति है और सभी मानव एक तरह से ही पैदा होते हैं। सभी मानवों को मानव ही समझना चाहिए। हिंदु धर्म में मौजूद वर्ण-व्यवस्था को गुरु रविदास ने नकार दिया था।
संत सिरोमणि गुरु रविदास जी ने लोगों के हित के लिए खूब कार्य किया। जिस समय लोग धर्म और जाति के नाम पर भेद करते थे, उस समय रविदास जी ने बहादुरी से सभी प्रकार के भेदभावों का सामना किया और लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया। वह लोगों को समझाते थे कि मानव जाति, धर्म या ईश्वर में आस्था से नहीं, बल्कि उसके कार्यों से पहचानी जाती है। रविदास जी ने समाज में अस्पृश्यता की व्यापकता को समाप्त करने के लिए बहुत प्रयास किए। उस समय निम्न जाति के लोग अत्यधिक हतोत्साहित थे।

वे मंदिर में पूजा नहीं कर सकते थे, स्कूल में नहीं पढ़ सकते थे, दिन में गाँव से बाहर नहीं जा सकते थे और यहाँ तक कि गाँव में पक्के घर के बजाय कच्ची झोंपड़ी में रहने को मजबूर होते थे। समाज की इस दुर्दशा को देखकर रविदास जी ने समाज से छुआछूत, भेदभाव को दूर करने का फैसला किया और लोगों को सही संदेश देना शुरू किया। संत सिरोमणि गुरु रविदास जी लोगों को सार्वभौमिक भाईचारे और सहिष्णुता की विभिन्न शिक्षाएँ देते थे। गुरु रविदास ने निचली जाति के लोगों के लिए प्रतिबंधित सभी गतिविधियों का विरोध किया जैसे शूद्रों (अछूतों) को ब्राह्मण जैसे सामान्य कपड़े पहनना, कुएं में से पानी पीना आदि। रविदास जी द्वारा लिखे गए विभिन्न धार्मिक गीतों और अन्य रचनाओं को सिख ग्रंथ ’गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी शामिल किया गया है।
संत सिरोमणि गुरु रविदास का महापरिनिर्वाण गुरु रविदास जी के सत्य, मानवता, ईश्वर के प्रति प्रेम, सद्भावना को देखकर उनके अनुयायी दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे थे। गुरु रविदास का महापरिनिर्वाण 70 साल की उम्र में राजस्थान में हो गया था। ये बताया जाता है कि कुछ ब्राह्मण उन्हें मारने की योजना बना रहे थे इसलिए यह भी कहा जाता है कि षड्यंत्र के तहत उनकी हत्या कर दी गई। साहित्य एवं समाज के संबंध को स्थापित करने वाले वैचारिक क्रांति के महान पुरोधो, वैज्ञानिक सोच के पोषक, समतामूलक समाज की चेतना तथा जन आंदोलन के प्रमुख स्तंभ,आज पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक मान्यताओं की शिखर शख्सियत के रूप में स्थापित हो रहे हैं। बौद्ध विरासत एवं श्रमण संस्ति को गुरुवाणी एवं देशाटन से प्रचारित प्रसारित करने वाले,
गुरु ग्रंथ साहिब में 41 वाणियों का योगदान देकर मानवता की धमम ध्वजा फहराने वाले संत शिरोमणि संत सिरोमणि गुरु रविदास वंचित समाज को आत्मसम्मान के साथ जीना सिखा गए।

कर्मवीर सिंह बौद्ध

कर्मवीर सिंह बौद्ध

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