चोखामेला
चोखामेला 14 वीं शताब्दी में भारत के महाराष्ट्र में एक संत थे। वह महार जाति के थे। वर्तमान समय में इसे भारत में अछूत जातियों में से एक माना जाता है। उनका जन्म बुलढाणा जिले के देउल गांव राजा तालुका के एक गांव मेहना राजा में हुआ था। वह महाराष्ट्र के मंगल वेधा में रहते थे। इनकी पत्नी का नाम सोयराबाई और पुत्र का नाम कर्म मेला था। उनके परिवार में भी वारकरी संप्रदाय का पालन किया। उन्हें कवि संत नामदेव द्वारा भक्ति आध्यात्मिकता में दिक्षित किया गया था। एक बार जब वह पंढरपुर गए तो उन्होंने संत नामदेव का कीर्तन सुना। चोखामेला पहले से ही विट्ठल विठोबा के भक्त थे। संत चोखामेला नामदेव की शिक्षाओं से भी प्रभावित थे। उनकी जाति के लोग गाँव से बाहर रहते थे, उनका प्राथमिक पेशा गांव से मरे हुए जानवरों को खींचकर गांव के बाहर ले जाना था। इस काम के लिए उन्हें कुछ भी मेहनताना नहीं दिया जाता था। यह उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी मानी जाती थी। चोखामेला का काम उच्च जाति के लोगों के खेतों में पहरा देना और काम करना था। उन्हें बचा हुआ झूठा भोजन खाना, पड़ता था और फटे पुराने कपड़े पहनने पड़ते थे।
संत चोखामेला ने कई अभंग लिखे। अभंग एक प्रकार के दोहे के समान होता है जो महाराष्ट्र में बहुत लोकप्रिय है। उनके प्रसिद्ध अभंगो में से एक ‘‘अबीर गुलाल उधलीत रंग‘‘ है। वह भारत के पहले निम्न जाति के कवियों में से एक थे। उन्होंने अनेक अभंगो की रचना की। वे पंढरपुर में पांडुरंगा के मंदिर के सामने गान और नृत्य किया करते थे। विडंबना यह है कि मंदिर के सामने आने वाले अन्य भक्तों को उनका गायन आकर्षित करता था। जब वह भगवान की भक्ति में गाते और नृत्य करते थे तब लोग उन्हें सुनते थे। लेकिन जैसे ही चोखामेला गायन और नृत्य करना बंद कर देते, तो लोगों की रूचि उनमें से गायब हो जाती और उनके लिए चोखामेला फिर से अछूत व्यक्ति हो जाते। मंदिरो के पुजारियों ने उनके मंदिर में भगवान के दर्शन पर रोक लगा दी थी। वह भगवान के लिए गाते और नाचते थे और तब तक गाते रहते थे जब तक वह गिर नही जाते थे। यह गतिविधि काफी देर तक चलती रहती थी। ब्राह्मणों ने इसे बर्दाश्त नहीं किया और फिर एक दिन उन्हें इस गतिविधि को करने से प्रतिबंधित कर दिया गया और उन्हें उस जगह को छोड़कर जाने के लिए कहा गया, उन्हें धक्का दिया और पीटा भी गया। वह कई बार नीचे गिरे फिर भी उन्होंने खुद को ऊपर उठाया और अपने पैरों पर खड़े हो गए और विनम्रता पूर्वक तर्क दिया कि ईश्वर में मेरा विश्वास उतना ही वास्तविक है जितना कि मेरा जन्म एक छोटी जाति में। मेरा जन्म कैसे बाधा बन सकता है ?
क्या सूर्य भगवान कीचड़ में पैदा हुए कमल पर नहीं चमकते? क्या केवल मिट्टी के तालाबों की उपेक्षा करके ही नदियों पर बादल बरसते हैं? क्या धरती माता हमसे बचती है? क्या मेरी प्रार्थना मेरे परमेश्वर के लिए अवांछित हो जाती है? उन्होंनेे कहा कि एक भक्त को अच्छा व्यवहार अहिंसा, दया, धैर्य, इंद्रियों पर नियंत्रण के जीवन जैसे अच्छे सिद्धांतों का अभ्यास करना चाहिए। अच्छे लोगों को हमेशा अच्छे लोगों की संगति में चलना चाहिए।
तथाकथित ब्राह्मण बुद्धिमानों के पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था। वे केवल इतना जानते थे कि वह उन्हें चुनौती दे रहा थे। उन्होंने बाधाओं को पार कर लिया था और उन्हें दंडित किया जाना था। इसलिए उन्होंने उन्हें उस स्थान से भगा दिया। उन्हें चंद्र भगवान नदी के दूसरे किनारे पर रहने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा कि यह लोग कितने मूर्ख हैं। क्या भगवान केवल नदी के एक किनारे में रहते हैं। चोखामेला ने चुपचाप भगवान के आदेश के रूप में उनके आदेश का पालन किया और वहां एक छोटी सी झोंपड़ी में बस गए। उनका मानना था कि जीवन के दो तत्व हैं। ईश्वर ने मनुष्य को बनाया और मनुष्य ने ईश्वर को। ईश्वर ने मनुष्य को बनाया और जब उसने मनुष्य को बनाया तो उसने कोई अंतर नहीं दिखाया। उसके लिए राजकुमार और कंगाल, अमीर और गरीब, आदमी और औरत, बुद्धिमान और मूर्ख सभी एक समान हैं। ईश्वर के एक समान को समझने के लिए हमें सुबह-सुबह सूर्य नमस्कार करना सिखाया जाता है। सूर्य स्त्री, पुरुष, फूल और चट्टान पर समान रूप से चमकता है। इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक समानता के लिए समाज के दलितों के लिए गाना गाना और काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य एक समान हैं और उन्हें समान व्यवहार दिया जाना चाहिए क्योंकि भगवान ने सभी को समान बनाया है। वह अपने लोगों को सभी ढोल और अन्य स्थानीय संगीत वादय यंत्रों के साथ इकट्ठा करते और उनके घर के अंदर एक साथ गाते थे। अन्य लोग भी उनके अभंगों को सुनते थे। विशेष रूप से महिलाओं को उनके अभंगो से प्यार था क्योंकि उनकी सामग्री में महिलाओं का विशेष उल्लेख हुआ करता था यहां तक कि उच्च जातियों में भी महिलाओं को छोटी जाति और जानवरों के रूप में माना जाता था। उनके पास कोई अधिकार नहीं था। एक बार पंढरपुर के पास मंगल वेदा में दीवार निर्माण का काम करते समय दीवार नीचे गिर गई और कुछ मजदूर दीवार के नीचे दब गये। दीवार के नीचे दबने से उन मजदूरोें का निधन हो गया। उनका मकबरा पंढरपुर के विट्ठल मंदिर के सामने है जोेे आज भी देखा जा सकता है। बीसवीं सदी की शुरुआत में बाबासाहेब अंबेडकर ने मंदिर जाने का प्रयास किया लेकिन चोखामेला की समाधि पर उन्हेें रोक दिया गया। हमें चोखामेला को पहले क्रांतिकारी के रूप में याद रखना चाहिए जिन्होंने समाज की समानता के लिए लड़ाई लड़ी। हमें उन्हें महान समाज सुधारक के रूप में याद करना चाहिए। निश्चित रूप से डॉ.बी.आर. अंबेडकर ने उनसे कुछ प्रेरणा ली होगी इसलिए उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘द अनटचेबल्सः हू आर दे एंड व्हाई दे बिकम अनटचेबल्स‘‘ चोखामेला को समर्पित की। हमें इस असली देशभक्त क्रांतिकारी और समाज सुधारक को हमेशा याद और सलाम करना चाहिए जिन्होंने समानता के लिए पूरे जीवन लड़ाई लड़ी।
प्रवीण सुगन