छत्रपति शाहूजी महाराज
छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापुर में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव बाबा घाटगे और माता का नाम राधाबाई साहिबा था। छत्रपति शाहूजी महाराज कोल्हापुर रियासत के राजा थे। वे भारत में सामाजिक लोकतंत्र के स्तंभ, दार्शनिक शासक, 1902 में सरकारी सेवा एवं शिक्षा में 50 प्रतिशत बहुजन प्रतिनिधित्व के जनक, सभी के लिए अनिवार्य, निःशुल्क एवं आवासीय शिक्षा लागू करने वाले महान राजा थे। छुआछूत, पर्दा प्रथा विरोधी, विधवा विवाह समर्थक, अन्तरजातीय विवाह के समर्थक, बाबा साहेब को सार्वजनिक जीवन में लाने वाले महान आधुनिक सम्राट अशोक के प्रतिरूप जिन्होंने राजसत्ता को जनकल्याण के लिए सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ अत्यंत कुशलता से इस्तेमाल किया। छत्रपति शाहू जी महाराज की शिक्षा राजकोट के राजकुमार कॉलेज में हुई थी। उन्होंने आगे की शिक्षा 1890 से लेकर 1894 तक ग्रहण की। बाद में शाहूजी महाराज ने अंग्रेजी, इतिहास और राज्य कारोबार चलाने में शिक्षा ग्रहण की। अपनी शिक्षा ग्रहण करने के बाद छत्रपति शाहूजी विवाह के योग्य हो गए और उनका विवाह अप्रैल में सन 1897 में श्रीमंत लक्ष्मीबाई से हो गया। विवाह के समय लक्ष्मीबाई की उम्र केवल 13 वर्ष की थी। 20 साल की उम्र होने के बाद ही उन्होंने सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली थी और शासन करने लगे थे। छत्रपति शाहूजी महाराज को भी जातिवाद का अपमान झेलना पड़ा था क्योंकि इनके राज्य अभिषेक समारोह के दौरान इनकी जाति शूद्र होने की वजह से इनका राजतिलक ब्राह्मणों ने अपने पैर के अंगूठे से किया था। वैसे तो हमारे मस्तिष्क में राजा-महाराजाओं की छवि केवल राज करने और कर हड़पने की ही बनी हुई है लेकिन छत्रपति शाहूजी महाराज सभी महाराजाओं से बिल्कुल अलग थे। राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले के मित्र और विश्वासपात्र मामा परमानंद की पुस्तक ’लैटर्स टू इंडियन राजा’ थी। इस पुस्तक में प्रकाशित पत्रों में छत्रपति शिवाजी महाराज को किसानों का नेता और एक न्यायप्रिय शासक बताया गया है। इस पुस्तक का छत्रपति शाहूजी महाराज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा इसलिए उन्होंने सबसे बड़ा काम राज व्यवस्था में परिवर्तन करके किया।
छत्रपति शाहूजी महाराज का मानना था कि प्रशासन में हर जाति के लोगों की सहभागिता जरूरी है। हालांकि उनके प्रशासन में अत्यधिक लोग ब्राह्मण जाति के ही थे। उस समय दलित जाति के लोगों को ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा हासिल नहीं करने दिया जाता था इसलिए छत्रपति शाहूजी महाराज इस बात को लेकर बहुत चिंतित रहने लगे थे।
उन्होंने प्रशासन में ब्राह्मणों के इस एकाधिकार को खत्म करने के लिए आरक्षण कानून बना दिया। उन्होंने बहुजन समाज के उद्धार और उनकी भागीदारी के लिए आरक्षण कानून बनाया जो आगे चलकर दलित समाज के हित में काम करता रहा। इस कानून के तहत बहुजन समाज को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था थी। जातिवाद को खत्म करने के लिए देश में आरक्षण की यह पहली व्यवस्था थी। अभी तक इस आरक्षण का कोई फायदा नहीं था क्योंकि अभी तक दलितों के लिए शिक्षा हासिल करना आसान नहीं था। शाहू जी महाराज हर साल स्नान के लिए पंचगंगा नदी पर जाते थे सनबर्न 1899 उनके ही राजपुरोहित ने महाराज को शूद्र कहकर नीचा दिखाया। दरअसल शूद्रों के स्नान के समय राम मंत्र बोलकर स्नान की विधि करते थे इस विधि को करने के बाद भी स्नान का लाभ माना जाता था लेकिन राजा होने के बावजूद शाहूजी महाराज की स्नान विधि भी राजपुरोहित ने रोना पद्धति से ही कराई। इस घटना से शाहूजी महाराज को बहुत गहरा धक्का पहुंचा इससे शाहूजी महाराज बहुत क्रोधित होते थे और उन्होंने राजपुरोहित और कीर्तन ख्वाब बनकर उनको इस धर्म के कार्य से हटा दिया। इस घटना के बाद शाहूजी महाराज ने पूरे विश्वास के साथ ब्रह्मणवादी परंपरा को खंडित करने का निश्चय किया। शाहूजी महाराज ज्योतिबा फुले जी कोे काफी मानते थे। ज्योतिबा फुले के देहांत के बाद सत्यशोधक समाज आंदोलन को छत्रपति शाहूजी महाराज ने ही चलाया था। 1911 मे छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपने संस्थान में सत्यशोधक समाज की स्थापना की। छत्रपति शाहूजी महाराज ने सत्यशोधक समाज के साथ सत्यशोधक पाठशाला भी खुलवा दी। छत्रपति शाहूजी महाराज ने अपना सारा खजाना शिक्षा के संस्थान खोलने में लगा दिया। छत्रपति शाहूजी महाराज का शिक्षा फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान था जिसके लिए उनके आज भी हम शुक्रगुजार हैं। उनके कारण अज्ञानी और पिछड़े बहुजन को आज ज्ञान मिल पा रहा है और वह समाज में आज सर उठाकर जी पा रहा है। छत्रपति शाहूजी महाराज के द्वारा ही पुनर्विवाह का कानून पास किया गया। समाज में इतना परिवर्तन करने के बाद और दलितों को इतना उठाने के बाद आखिरकार 6 मई 1922 को बहुजन समाज के सबसे प्रिय राजा छत्रपति शाहूजी महाराज का परिनिर्वाण हो गया और वह अपने पीछे कई ऐसे कार्य छोड़ गए जिनका हम कितना भी शुक्रगुजार कर लंे वो कम है। छत्रपति शाहूजी महाराज का हम कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे। उन्होंने वंचित समाज को शिक्षा जैसे क्षेत्र में आरक्षण देकर हमें ब्राह्मणों की पाखंडवादी सोच से मुक्त कर दिया।
संजीव सत्यार्थी