Biography of EV Ramasamy – ई.वी. रामासामी

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ई.वी. रामासामी
ई.वी. रामासामी

ई.वी. रामासामी

ई.वी. रामासामी

ई.वी. रामासामी एक तमिल राष्ट्रवादी,राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। इनके प्रशंसक इन्हें आदर के साथ ‘पेरियार’ संबोधित करते थे। पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ प्रारंभ किया था। उन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई। वे आजीवन रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध करते रहे और हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होने घोर विरोध किया।

उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लिए आजीवन कार्य किया। उन्होंने ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों पर करारा प्रहार किया और एक पृथक राष्ट्र ‘द्रविड़ नाडु’ की मांग की। पेरियार ई.वी. रामासामी ने तर्कवाद, आत्म-सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया और जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय गैर-तमिल लोगों के हक की लड़ाई लड़ी और उत्तर भारतियों के प्रभुत्व का भी विरोध किया। उनके कार्यों से ही तमिल समाज में बहुत परिवर्तन आया और जातिगत भेद-भाव भी बहुत हद तक कम हुआ। यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकारी के रीति-रिवाज का दुश्मन’ कहा।

पेरियार रामासामी नायकर का जन्म 17 सितम्बर 1879 को तमिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न और परम्परावादी हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता वेंकतप्पा नायडू एक धनी व्यापारी थे। उनकी माता का नाम चिन्ना थायाम्मल था।

उनका एक बड़ा भाई और दो बहने भी थीं। सन 1885 में उन्होंने स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के लिए दाखिला लिया पर कुछ सालों की औपचारिक शिक्षा के बाद वे अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए। बचपन से ही वे रूढ़िवादिता, अंधविश्वासों और धार्मिक उपदेशों में कही गयी बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे। उन्होंने हिन्दू महाकाव्यों और पुराणों में कही गई परस्पर विरोधी बातों को बेतुका कहा और मखौल भी उड़ाया। उन्होंने सामाजिक कुप्रथाएं जैसे बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह का विरोध और स्त्रियों और दलितों के शोषण का खुलकर विरोध किया। उन्होने जाति व्यवस्था का भी विरोध और बहिष्कार किया। पेरियार हमेशा तर्कशील बातें किया करते थे।

वैकोम और आत्मसम्मान आंदोलन

आन्दोलन’ का मुख्य लक्ष्य था गैर-ब्राह्मण द्रविड़ों को उनके सुनहरे अतीत पर अभिमान कराना। सन 1925 के बाद पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ के प्रचार-प्रसार पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया। आन्दोलन के प्रचार के एक तमिल साप्ताहिकी ‘कुडी अरासु’ और अंग्रेजी जर्नल ‘रिवोल्ट’ का प्रकाशन शुरू किया गया। इस आन्दोलन का लक्ष्य महज ‘सामाजिक सुधार’ नहीं बल्कि ‘सामाजिक आन्दोलन’ भी था। तमिलनाडु की सामाजिक संरचना उत्तर भारत की सामाजिक संरचना से कुछ भिन्न थी। वर्ण-व्यवस्था के अंतर्गत शिखर पर स्थित ब्राह्मणों के पास सभी अधिकार केन्द्रित थे। लगभग 93 प्रतिशत शूद्र एवं अतिशूद्र सभी प्रकार के मानवीय अधिकारों से वंचित थे। यहां पर यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि तमिलनाडु में क्षत्रियों की संख्या, कुछ राजघरानों तथा वैश्यों की संख्या कुछ व्यापारिक परिवारों तक ही सीमित थी। दक्षिण भारत में अस्पृश्यता अपने वीभत्स रूप में प्रचलित थी। इन सामाजिक परिस्थितियों से पेरियार के विचार बहुत प्रभावित हैं। पेरियार ई.वी. रामासामी नायकर के विचारों का उल्लेख करने के पहले उनके समय के तमिलनाडु प्रदेश की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालना आवश्यक है। उस समय तमिलनाडु की सामाजिक संरचना उत्तर भारत की सामाजिक संरचना से कुछ भिन्न थी। उनके अनुसार दलित एवं शूद्र इस देश के मूल निवासी हैं। आर्य बाहर से यहां आक्रमणकारी के रूप में आये तथा यहां के मूल निवासियों को युद्ध में पराजित करके अपना दास बना लिया। आर्यों ने यहां के मूल निवासियों को न केवल दास बनाया बल्कि उनकी समृद्धशाली सभ्यता को भी नष्ट किया।

आर्यों ने अपना वर्चस्व चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से वैदिक धर्म एवं वर्णव्यवस्था का निर्माण किया। ईश्वर का आविष्कार आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को मानसिक दास बनाने के लिए किया। इसलिए रामासामी पेरियार ने ईश्वर, धर्म, आत्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग-नर्क आदि सिद्धान्तों तथा इन सिद्धान्तों का दुष्प्रचार करने वाले धर्म ग्रन्थों का कड़ा विरोध किया। उनका मानना था यदि वास्तव में धर्म एवं ईश्वर का अस्तित्व होता, तो समाज में समानता स्थापित होती। यदि संसार में निर्धन-धनी, ऊँच-नीच का भेद समाप्त कर दिया जाए तो ईश्वर और धर्म का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इसी प्रकार उन्होंने गहरी संवेदना के साथ कहा था कि ‘ईश्वर नहीं है, ईश्वर नहीं है, ईश्वर बिल्कुल नहीं है, जिसने ईश्वर का अविष्कार किया वह मूर्ख है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह धूर्त है, जो ईश्वर को पूजता है वह जंगली है।’

उनका कहना था कि मनुष्य के अतिरिक्त पृथ्वी के किसी अन्य प्राणी के लिए ईश्वर का कोई औचित्य नहीं है, धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती, जातियां नहीं बनी है, तो मात्र मनुष्यों के लिए ही ईश्वर, धर्म एवं जातियों का अस्तित्व क्यों है?उनके चिंतन का मुख्य विषय समाज था, फिर भी उनके विचार और दृष्टिकोण राजनीति एवं आर्थिक क्षेत्र में परिलक्षित होते हैं, उनका अटूट विश्वास था कि सामाजिक मुक्ति ही राजनैतिक एवं आर्थिक मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। उनकी इच्छा थी कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने से पहले ही सामाजिक समानता स्थापित हो जानी चाहिए, अन्यथा स्वाधीनता का यह अभिप्राय होगा कि हमने विदेशी मालिक की जगह भारतीय मालिक को स्वीकार कर लिया है।

उनका सोचना था कि यदि इन समस्याओं का समाधान स्वाधीनता प्राप्ति के पहले नहीं किया गया, तो जाति व्यवस्था और उनकी बुराइयां हमेशा बनी रहेंगी। उनका कहना था कि राजनैतिक सुधार से पहले सामाजिक सुधार होना चाहिए। हिंदू वर्णव्यवस्था के अनुसार दलितों एवं शूद्रों का राज्य संस्था के संचालन में हस्तक्षेप वर्जित था। आधुनिक भारत में राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने राजनैतिक क्षेत्र में दलितों एवं शूद्रों के लिए प्रतिनिधित्व की मांग की थी। पेरियार रामासामी ने भी दलितों एवं शूद्रों के लिए राजनैतिक क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने का विचार व्यक्त किया। उन्होंने जातिप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए बहुत संघर्ष किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय पेरियार ने कांग्रेस के सम्मेलन में जनसंख्या के अनुपात में नौकरियों में प्रतिनिधित्व संबंधी प्रस्ताव स्वीकृत् कराने का प्रयास किया था। 1950 में तत्कालीन मद्रास सरकार ने पेरियार की सलाह पर नौकरियों में दलितों और पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत स्थान सुरक्षित करने का निर्णय लिया। मद्रास सरकार के इस निर्णय को उच्च वर्णीय व्यक्तियों द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय का समर्थन किया। यह याचिका मद्रास राज्य बनाम चम्पक दुरई राजन के नाम से जानी जाती है।

बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर उस समय मंत्री थे। नौकरियों में आरक्षण के लिए किया गया उनका संघर्ष निष्फल हो गया। रामासामी पेरियार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध विशाल आंदोलन चलाया और संविधान में संशोधन की मांग की। फलस्वरूप संविधान में प्रथम संशोधन 18 जून 1951 को हुआ जिसमें अनुच्छेद 15 व 16 को संशोधित किया गया। रामासामी पेरियार का मत था कि सरकार को सामाजिक समानता एवं एकता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। वे सामाजिक परिवर्तन के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों के नियंत्रण में सरकार को संचालित करने का विचार व्यक्त करते हैं। समता आंदोलन के ऐसे सजग पृहरी को हम कोटि-कोटि वंदन करते हैं।

किरण पाल सिंह, मलाया सिंह
किरण पाल सिंह, मलाया सिंह

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