गुरु घासीदास बाबा
तथागत बुद्ध, संत कबीर, गुरु रैदास की समतामूलक एवं मानवतावादी परंपरा तथा विचारधारा को आगे बढ़ाने वाले गुरु घासीदास जी सामाजिक असमानता, ऊंच-नीच, छुआछूत, पाखंडवाद, मूर्ति पूजा, बाल विवाह, बहु विवाह के कट्टर विरोधी थे। इन्होंने मानव-मानव एक समान, अंतिम ज्ञान हमारे अंदर है, जैसे मानवीय सिद्धांतों के आधार पर सतनामी आंदोलन की नींव रखी। साल 1820 में अपने जन्म स्थान गिरौदपुरी में 6 महीने तक लाखों समर्थकों को सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षित एवं प्रशिक्षित किया। आज सतनामी छत्तीसगढ़ का बहुत ही प्रभावशाली, राजनैतिक रूप से मजबूत एवं क्रांतिकारी समाज है। गुरु घासीदास जी का जन्म 18 सितंबर 1756 को ग्राम गिरौदपुरी जिला रायपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री महंगूदास जी और माता का नाम श्रीमती अमरौतिन था। गुरु घासीदास जानवरों से भी प्रेम किया करते थे। वह जानवरों के साथ क्रूर व्यवहार करने को पाप समझते थे। उनके विचारों और संदेशों का समाज के पिछड़े वर्गों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसका परिणाम ये हुआ कि 1901 तक ही लगभग 4 लाख लोग गुरु घासीदास जी के अनुयायी बन चुके थे और उनके द्वारा बनाये गये ‘‘सतनाम‘‘ पंथ का हिस्सा बन चुके थे।
गुरु घासीदास बाबा को ज्ञान की प्राप्ति एक पेड़ के नीचे ध्यान करने के पश्चात बिलासपुर रोड, सारंगढ़ तहसील, जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़ में हुई। यहां आज भी गुरु घासीदास जी का धाम स्थित है जिसको गुरु घासीदास पुष्प वाटिका के नाम से जाना जाता है। गुरु घासीदास जी ने अपने स्वयं के अनुभव से समाज में फैली बुराइयों विशेषकर जातिगत विषमताओं को प्रमुख मुद्दा बनाया और उनका पूर्ण रूप से विरोध किया। उन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को भी खारिज कर दिया और समाज को विभिन्न वर्गों में बांटने वाली जाति-व्यवस्था का विरोध ही नहीं किया बल्कि जातिगत व्यवस्था के समूल विनाश के लिए बड़ा आंदोलन भी चलाया।
गुरु घासीदास बाबा ने प्रत्येक व्यक्ति को समान माना। मूर्ति पूजा को वर्जित करार दिया। इन्होंने पशुओं पर दया का अभियान भी चलाया।
छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सैनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरु घासीदास के सिद्धांतो का गहरा प्रभाव पड़ा था। इनके संदेशों, विचारों और सिद्धांतो का प्रसारपंथी गीत व नृत्यों के जरिये भी व्यापक रूप से हुआ। आज गुरु घासीदास बाबा के विचारों को लोक विधा द्वारा प्रसारित व प्रचारित किया जाता है।
गुरु घासीदास बाबा जी की प्रमुख शिक्षाएं
01-नशा कभी नहीं करना
02-जीव हत्या नहीं करना
03-सतनाम पर विश्वास रखना
04-मांसाहार नहीं करना
05-व्याभिचार नहीं करना
06-चोरी व जुए से दूर रहना
07-जाति भेद व वर्ण व्यवस्था के प्रपंच में ना पड़ना।
समाज सुधार के कार्य संत गुरु घासीदास बाबा जी ने वैसे तो सभी समाजिक बुराइयों का विरोध किया था। परंतु छुआछूत और वर्ण-व्यवस्था के वो कट्टर विरोधी थे। छुआछूत के भेद को मिटाने के उद्देश्य के लिए उन्होंने ‘‘मनखे-मनखे एक समान‘‘ का संदेश दिया। उनकी शिक्षाओं और समाज के प्रति किये गये कार्यों को याद करने के लिए 18 दिसंबर को उनकी जयंती छत्तीसगढ़ राज्य में पूरी श्रद्धा, उत्सव व हर्ष उल्लास के साथ मनाई जाती है। वे आधुनिक युग के एक सशक्त और अत्यन्त प्रभावी संत थे। छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी स्मृति में सामाजिक चेतना एवं सामाजिक न्याय के क्षेत्र में गुरु घासीदास बाबा सम्मान स्थापित किया है। भारत सरकार ने भी संत घासीदास जी के सम्मान में 1987 ई. में डाक टिकट जारी करके उनके प्रति कृतज्ञता दिखाई। इस कड़ी में भारत सरकार ने सन 1983, में गुरु घासीदास जी को सम्मान प्रदान करते हुए उनके नाम पर ‘‘गुरु घासीदास विश्वविद्यालय‘‘ की स्थापना बिलासपुर में की थी। सन 2009 में इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। गुरु घासीदास जी का परिनिर्वाण जीवन के अंतिम समय में जातियों में भेदभाव और समाज में भाईचारे की कमी देखकर गुरु घासीदास बहुत निराश हुए। ताउम्र समाज को भेदभाव से मुक्त कराने के लिए वो हमेशा बिना रुके, बिना थके प्रयासरत रहे। उनको इस जटिल समस्या का समाधान नजर नहीं आ रहा था आखिर जीवन के अंतिम समय में भी गुरु घासीदास जी संघर्ष करते रहे। गुरु घासीदास बाबा की परिनिर्वाण की तारीख 1850 बताई जातीे है। उनके देह त्याग करने की जगह का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता।
डॉ राजकुमार