वीरांगना उदा देवी पासी
उदा देवी पासी उन वीरांगनाओं में से थीं जिन्होंने अपने शौर्य से अंग्रेजो की नाक में दम कर दिया था। ये एक दलित वीरांगना थी जिन्होंने ब्रिटिश सैनिकों को अपने साहस से ऐसी मात दी कि अंग्रेज अधिकारी और पत्रकार भी इनके बारे में बात करने से खुद को रोक नहीं पाए। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में हुआ था। ऊदा देवी, ‘पासी’ जाति से संबंध रखती थी। इनके पति का नाम मक्का पासी था। ये उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ की रहने वाली थीं और यह भी कहा जाता है कि उन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग में एक पेड़ पर चढ़कर 2 दर्जन से अधिक अंग्रेजी सिपाहियों को मार डाला था।
उदा देवी पासी के ससुराल का नाम जगरानी थे। जब ऊदा देवी के पति अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के दस्ते में शामिल हो गए, वहीं से ऊदा को सेना में भर्ती होने की प्रेरणा मिली और ये वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य बनीं। उदा देवी पासी के पति मक्का पासी भी काफी साहसी और पराक्रमीे थीं। इनके साहस और जल्द निर्णय लेने की क्षमता से भारत के स्वाधीनता संग्राम की नायिकाओं में एक बेगम हजरत महल भी उनसे बहुत प्रभावित हुईं और नियुक्ति के कुछ दिनों बाद ही ऊदा बेगम हजरत महल की महिला सेना टुकड़ी की कमांडर बना दी गईं।
यूं तो उस जमाने में एक गरीब दलित परिवार में पैदा होने के बाद एक महिला का सैनिक बनना अपने आप में ही बड़ी बात थी पर ऊदा देवी से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है जिसका जितनी बार उल्लेख किया जाए उतनी ही बार ऊदा के लिए मन में सम्मान और भी बढ़ जाता है। ये किस्सा कुछ यूं है, कहा जाता है जब 16 नवंबर 1857 को मेरठ में सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू किया तब क्रांति की हवा पूरे उत्तर भारत में तेजी से फैलने लगी।
लखनऊ में कस्बा चिनहट के पास इस्माईलगंज में हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज और मौलवी अहमदउल्लाह शाह की अगुआई में संगठित विद्रोही सेना के बीच ऐतिहासिक लड़ाई हुई। इसमें विद्रोही सेना की जीत हुई और हेनरी लॉरेंस की फौज को मैदान छोड़ कर भागना पड़ा। ये स्वतंत्रता की लड़ाई की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी। इस सेना में ऊदा के पति मक्का पासी भी शहीद हो गए थे। अब कुछ ऐसा होने वाला था जिससे ऊदा देवी इतिहास में अमर होने वाली थी। जल्द ही ऊदा को मौका मिला चिनहट के महासंग्राम की अगली कड़ी सिकंदर बाग की लड़ाई में हिस्सा लेने का। अंग्रेज चिनहट की लड़ाई में हार से बौखलाए हुए थे।
उन्हें जैसे ही ये मालूम पड़ा की दो हजार विद्रोही सैनिक लखनऊ के सिकंदर बाग में मौजूद हैं, अंग्रेजों ने वहां घेराबंदी की सोची। उदा देवी पासी के नेतृत्व में वाजिद शाह की स्त्री सेना भी बाग में मौजूद थी। अंग्रेज विद्रोही सैनिकों पर हमला करने लगे। इस दौरान कई सैनिक बेरहमी से मारे गए। ऊदा ने जब ये सब देखा तो वह हाथों में बंदूक और कंधों पर भरपूर गोला-बारूद के साथ पीपल के एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई। वहां से उन्होंने कई अंग्रेज सैनिकों पर ताबड़तोड़ गोली बारूद बरसाना शुरू किया।
जब तक अंग्रेज उदा देवी पासीको देखते तब तक वो कई सैनिकों को मौत के घाट उतार चुकी थीं। बाद में अंग्रजों की जब उदा देवी पासी पर नजर पड़ी तब उन्होंने ऊदा पर गोलियां बरसाना शुरू किया। उदा देवी पासी ने ब्रिटिश सेना के 30 से अधिक अंग्रेज सैनिकों को मार गिराया। गोली लगने के बाद उदा देवी पासी पेड़ से गिर पड़ी। बाद में अंग्रेज जब बाग के अंदर आ पाए तो उन्होंने देखा की जो पेड़ पर चढ़कर उनके अंग्रेज सैनिकों पर गोली बरसा रहा था वो कोई पुरुष सैनिक नहीं बल्कि एक महिला सैनिक थी। ऊदा की स्तब्ध कर देने वाली वीरता को देखकर अंग्रेजी अफसर कैम्पबेल ने हैट उतारकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।
विदेश में ऊदा देवी के किस्से
साल 1857 के दौरान लंदन टाइम्स अखबार के वार कॉरेस्पोंडेंट विलियम हावर्ड रसेल लखनऊ में मौजूद थे। विलियम ने लंदन स्थित लंदन टाइम्स दफ्तर में सिकंदर बाग की लड़ाई की भी एक खबर भेजी थी जिसमें ऊदा देवी का जिक्र किया गया था। खबर में पुरुषों के कपड़ों में एक महिला द्वारा पेड़ से फायरिंग करने और कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डालने की बात कही गई थी। जर्मन दार्शनिक और इतिहासकार कार्ल मार्क्स ने भी उदा देवी पासी की वीरता के बारे में चर्चा की है।
डॉ जयकरन