Phoolan Devi Ki Kahani – वीरांगना फूलन देवी

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फूलन देवी
फूलन देवी

वीरांगना फूलन देवी

फूलन देवी

फूलन देवी एक ऐसी जाँबाज़ महिला की जीवन यात्रा है जो जैसे-जैसे आगे बढ़ती है वैसे-वैसे इस समाज की खामियां और कुरीतियों को उजागर करती जाती है।10 अगस्त 1963 को, जालौन जिला, उत्तर प्रदेश में, मल्लाह जाति मे फूलन का जन्म हुआ। देश और दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली इस साहसी महिला का जीवन अपने आप में प्रेरणात्मक है जिसने अपने, अनेकों अपमान का बदला अपने तरीके से लिया। माता मूलादेवी व पिता दीनदयाल मल्लाह की पुत्री का बचपन संघर्षमय बीता। अल्पायु में पिता का साया हट जाने के कारण उनके परिवार की देखभाल उनके चाचा ने की और इस बात का भरपूर फायदा लेते हुए चाचा व चचेरे भाइयों ने उनकी पैतृक ज़मीन पर कब्जा कर लिया। फूलन का अपने चचेरे भाइयों से इस पर काफी संघर्ष भी हुआ। चाचा ने अपनी जिम्मेदारी षड्यंत्रकारी इरादे से निभाते हुए फूलन का बालविवाह उसकी उम्र से लगभग चार गुना बड़े व्यक्ति पुत्तीलाल मल्लाह से पैसे लेकर करवा दिया। कम आयु की फूलन जब विवाह पश्चात अपने ससुराल आई वहां उसे मानसिक व शारीरिक यातनाएं झेलनी पड़ी। उन्हे लगने लगा कि यहां पर मानवीय सम्मान की कोई जगह नहीं। परेशान होकर वह मायके लौटी और मायके में उन्हे महसूस हुआ कि यहां से उसकी शादी नहीं हुई बल्कि उसे बेचा गया है। मायके में उन्हेे प्रताड़ित और लज्जित होना पड़ा क्योंकि वो अपने पति और ससुराल को छोड़ कर आई थी और अब यहां उनका कोई स्थान व सम्मान नहीं था। हालात ऐसे बन गए कि गांव के दबंग वर्ग की नज़र खराब होने लगी और ठाकुरों के एक गैंग ने जबरन फूलन को उठा लिया और एक मकान में ले जाकर एक हफ्ते तक बारी-बारी से उसका बलत्कार करते रहे। इस अपमान और पीड़ा से फूलन अन्दर ही अन्दर इस अपमान का बदला लेने की खातिर बीहड़ में चली गई। जहाॅं उसकी मुलाकात डकैतों के एक गैंग से हुई। फूलन ने अपनी आपबीती सुनाई तो डकैतों ने उसे आश्वासन दिया और कहा कि उनके साथ हुए अत्याचार का बदला जरूर लेगें। और देखते ही देखते फूलन ने अपना गैंग खुद बना लिया।

फूलन के मन में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी। कुछ माॅह पश्चात 14 फरवरी 1981 को अपने गिरोह के साथ बेहमई गाॅंव वापस लौटी और उच्च जातियों के लगभग 22 लोगों को जिन्होंने अत्याचार व शोषण किया था उन सभी को हथियार उठाकर एक साथ मौत की नींद सुलाकर अपने प्रतिशोध का बदला लिया और वो दखते-दखते बुंदेलखंड क्षेत्र मे कमजोर जातियों की ’’राॅबिनहुड’’ बन गई।

एक तरफ पुलिस फूलन को ढूॅढ रही थी वहीं गरीब गाॅंववासियों ने फूलन की काफी मदद की। फूलन को ’’बीहड़ों की रानी’’ कहा जाने लगा। मीडिया और शासन-प्रशासन का दबाव बढ़ता जा रहा था, फिर भी पुलिस लगभग दो साल तक ’’बीहड़ों की रानी’’ को नहीं ढूंढ पाई। केंद्र की सत्ता ‘‘ बेहमई कांड ‘‘ से हिल गई थी। केंद्र सरकार ने फूलन से आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा। फूलन देवी ने अपने सदस्यों के साथ, अपनी शर्तों के पूरे हथियारों के साथ, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने हजारों समर्थकों के साथ मंच पर, मध्य प्रदेश की सरकार के समक्ष सरकारी कार्यक्रम में बड़ी शान के साथ बीहड़ों को विदा कह, फरवरी 1983 कोे आत्मसमर्पण कर दिया। आत्मसमर्पण की शर्तों में, यूपी पुलिस को समर्पण नहीं करना, गिरोह के किसी सदस्य को मृत्युदंड नहीं होगा, सभी को एक-एक प्लॉट, दुर्गा देवी के समक्ष हथियार समर्पण में परिवार साक्षी बने आदि सभी शर्तें मानी गई। फूलन देवी पर अन्य सदस्यों पर कोर्ट-कचहरी-मुकदमा चला। लगभग 11 साल बाद 1994 में पैरोल पर रिहा किया गया। तब उत्तर प्रदेश में भी मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। निषाद समाज व मल्लाह समाज ने सरकार से पैरवी की और सरकार से आग्रह किया कि काफी समय जेल में कट चुका और अब इनके तमाम मामलों को वापस लिया जाए।

मुलायम सरकार ने आग्रह स्वीकार किया और जेल से रिहा किया। फूलन अपनी नई भूमिका और नई चुनौतियों के लिए फिर तैयार थी। प्रदेश की सपा सरकार ने फूलन देवी को सामाजिक सम्मान दिलाने के उद्देश्य से उन्हें मिर्जापुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया। 1996 में वह जीतीं और लोकसभा सदस्य भी बनीं। 1998 में वे चुनाव हार गई और 1999 में चुनाव फिर से जीत गईं। जेल से छूटकर उन्होंने उम्मेद सिंह नामक व्यक्ति से विवाह रचाया और 15 फरवरी 1995 को बुद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहण की। नई दिल्ली का लुटियंस जोन उनका नया आवास बना, वे संसद सदस्य थीं। 25 जुलाई 2001 को दोपहर 1ः30 बजे उनके दिल्ली आवास के मुख्य द्वार पर शेर सिंह राणा नामक व्यक्ति द्वारा पिस्तौल से हमला किया गया और इस हमले में फूलन देवी को कई गोलीं लगीं, उन्हें अस्पताल में ले जाया गया और डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। फूलन देवी के जीवन पर निर्देशक शेखर कपूर ने ‘‘बैन्डिट क्वीन‘‘ नामक फिल्म भी बनाई और फूलन ने अपनी आत्मकथा भी लिखी। फूलन देवी आत्मसम्मान का नाम है, जिसने अपने स्वाभिमान को बिना घुटने टेके मरते दम तक जीवित रखा।

     सुंदरी डोगर बौद्ध

सुंदरी डोगर बौद्ध

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