Swami Achyutanand Biography In Hindi – स्वामी अछूतानंद

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स्वामी अछूतानंद
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स्वामी अछूतानंद

स्वामी अछूतानंद

 

‘‘स्वामी अछूतानंद‘‘ ने उत्तर भारत में बहुजन नवजागरण आंदोलन को नेतृत्व देते हुए बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर के साथ मिलकर स्वतंत्र प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष किया। गुरुमुखी, संस्त, बंगला, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के ज्ञाता स्वामी अछूतानंद ने प्रचलित वर्ण-व्यवस्था, सामाजिक विषमताओं एवं रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए बहुजन समाज में राजनैतिक चेतना पैदा करने का प्रयास किया। उन्होंने अछूत आंदोलन को बढ़ावा देकर बुद्धिज्म का प्रचार-प्रसार किया, एवं अनेक स्कूलों की स्थापना करके बहुजन समाज के बौद्धिक सशक्तिकरण को आगे बढ़ाया। बहुजन समाज के महान समाज-सुधारक और महान स्वामित्व वाले स्वामी अछूतानंद जी का जन्म 06 मई 1879 में हुआ। इनके बचपन का नाम हीरालाल था। इनकी माता का नाम राम पियारी और पिता का नाम मोती राम था। स्वामी अछूतानंद का परिवार फर्रुखाबाद जिले में छिबरामऊ तहसील के सौरिख गांव में रहता था। गांव में ग्रामीणों से संघर्ष के बाद स्वामी अछूतानंद का परिवार मैनपुरी के सिरसागंज में रहने लगा। स्वामी अछूतानंद बचपन से ही पढ़ने के बहुत शौकीन थे।

उनकी शुरुआती शिक्षा फौज के स्कूल में हुई थी। इन्हें उर्दू, फारसी और अंग्रेजी की पढ़ाई के साथ-साथ धम्म उपदेश सुनना भी बहुत अच्छा लगता था। धीरे-धीरे स्वामी अछूतानंद बड़े होने लगे और साल 1905 में उनका विवाह दुर्गाबाई नामक एक लड़की से हो गया। स्वामी अछूतानंद समाज के प्रति सजग थे। उन्होंनेे 1912 से 1922 तक जाति सुधार और सामाजिक सुधार के साथ-साथ धम्म को आगे बढ़ाने का काम किया। स्वामी अछूतानंद द्वारा ही आदि हिंदु आंदोलन स्थापित किया गया। षुरुआत में स्वामी अछूतानंद आर्य समाज के बेहद लोकप्रिय प्रचारक बन गए लेकिन धीरे-धीरे जब उन्हें यह पता चला कि आर्य समाज में अस्पृश्यता काफी हद तक बढ़ गई है

और वह अति पिछड़ी जाति के बच्चों को अलग बैठाकर पढ़ाते हैं तब उन्हें यह समझ आने लगा था कि आर्य समाज उन्हें ईसाइयों और मुसलमानों का शत्रु बना रहा है इसलिए उनका जल्द ही आर्य समाज से मोहभंग हो गया।

स्वामी अछूतानंद की भाषण कला अद्भुत थी और भाषण देने में वो निपुण थे। वे अपनी भाषा से लोगो के मनांे को जीत लिया करते थे।

साल 1905 में स्वामी अछूतानंद ने दिल्ली पहुंचकर अछूत आंदोलन की शुरुआत कर दी। इस आंदोलन के बाद अपने लेखन और भाषणों के कारण वे लंबी यात्राएं करने लगे। अब लोगों पर स्वामी अछूतानंद का प्रभाव पड़ने लगा था और लोग उन्हें प्यार से स्वामी हरिहरानंद के बजाय स्वामी अछूतानंद कहने लगे। स्वामी अछूतानंद अब अपने कविता , लेख और नाटक आदि के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने लगे। उनके आदि अछूत आंदोलन ने जातिवाद का विरोध किया था। उनकी भाषा शैली में अच्छी पकड़ और भाषण में निपुण होने के कारण यह पता चलता है कि स्वामी अछूतानंद कबीरदास और संत रविदास की परंपरा के कवि थे। जब अछूतानंद की पहली पुस्तक साल 1917 में प्रकाशित हुई थी तो इस पुस्तक ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। अपनी पहली पुस्तक ‘‘हरिहर भजनमाला‘‘ में स्वामी अछूतानंद ने समाज की कुरीतियों को उजागर किया था। इन्होंने धीरे-धीरे दलितों की स्थिति और सामाजिक संघर्ष की कविताओं, गजलों और नाटकों को भी लिखना शुरू किया। उनके लेखन से हमें यह पता चल जाता है कि स्वामी अछूतानंद को उस समय भी भविष्य साफ साफ दिख रहा था। उन्होंने अपनी लेखनी से दलितों के लिए काफी कुछ लिखा। ये वास्तव मेें देखा जा सकता है कि स्वामी अछूतानंद दलित मुक्ति चेतना में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर से पूर्व की पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

स्वामी जी का समाज-सुधार

स्वामी अछूतानन्द का समाज-सुधार विशेष रूप से दलित जातियों में मानवीय गरिमा और आत्म-सम्मान पैदा करने का था। उन्होंने 1912 से 1922 तक इसी क्षेत्र में खास काम किया। उसके बाद जब अछूत आन्दोलन आरम्भ हुआ तो उन्होंने अपने समाज-सुधार कार्य को और भी व्यापक रूप से आगे बढ़ाया। ये सुधार इतने क्रान्तिकारी थे कि इन्होने द्विजातियों में खलबली मचा दी थी। इन सुधारों में अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना, गन्दे पेशों का परित्याग करना, मृतक पशु के सड़े माँस को खाने से रोकना बेगार (जबरदस्ती काम करवाना ) के विरुद्ध संघर्ष करना, नशे उन्मूलन, और आपस में छुआछूत न करना, प्रमुख थे। ये सुधार साधरण नहीं, बल्कि असाधरण थे। एक तो इन सुधारों ने अछूत समाज की यथास्थिति को तोड़कर उसे गतिशील बनाया था और दूसरा उन्होंने अछूतों को मनुष्य होने का बोध कराया था। उस समय द्विजातियों द्वारा उनसे जबरन बेगार कराना एक आम बात थी। स्वामी जी ने इसके विरुद्ध अछूतों को संगठित किया।

इसी तरह स्वामी जी ने गन्दे पेशों को बन्द कराने के लिए व्यापक आन्दोलन चलाया, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में अछूतों ने मृतक जानवरों को उठाने और उनकी खाल उतारने का गन्दा काम छोड़ दिया था। एक बहुत ही अपमानजनक प्रथा सतबसना थी, जिसके तहत दाई का काम करने वाली अछूत स्त्रियों को द्विजातियों के घरों में बच्चा जनने के लिए सात दिन तक जच्चा के साथ ही रहना होता था।

स्वामी जी ने इस प्रथा का विरोध किया और अछूत स्त्रियों को सतबसना के लिए जाने से रोका। सामान्य से दिखने वाले इन सुधारों के गम्भीर राजनैतिक अर्थ भी थे, जिसने द्विजातियों के कान खड़े कर दिए थे। उन्होंने अनुभव कर लिया था कि उत्तर प्रदेश की अछूत जातियों में एक बड़े राजनैतिक विद्रोह का आगाज हो चुका था।

इस आगाज ने न केवल पूरे हिन्दू समाज को, बल्कि उस समय के साहित्य और पत्रकारिता को भी उद्वेलित कर दिया था। सन 1928 में स्वामी अछूतानंद की मुलाकात बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर से मुंबई में आयोजित आदि हिन्दू सम्मेलन में हुई थी यहां दोनों ने मिलकर दलितों के हित के लिए संघर्ष करने का भी फैसला किया था। यह कहा जाता है कि स्वामी अछूतानंद ने ही सबके सामने यह उजागर किया था कि दलितों का असली नायक बाबासाहेब हैं ना कि गांधी।

स्वामी अछूतानंद ने अपने पूरे जीवन काल में दलितों के आत्मसम्मान के लिए और उनके हक के लिए संघर्ष किया उन्होंने अपनी लेखनी से हमेशा समाज को जागरूक किया। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि स्वामी अछूतानंद वंचित समाज के पहले पत्रकार थे जिन्होंने समाज को सच्चाई से रूबरू कराया। अपने पूरे जीवन काल में दलितों के लिए लड़ने के बाद स्वामी अछूतानंद का 20 जुलाई 1933 को केवल 54 साल की उम्र में परिनिर्वाण हो गया और वो इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। स्वामी अछूतानंद द्वारा किए गए कार्य को आज भी बहुजन समाज याद करता है और उनको उनके द्वारा किए गए हर कार्य के लिए नमन करता है।

सचिन कुमार

   सचिन कुमार

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